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WASP-76b ग्रह पर होती है लोहे की बारिश: पृथ्वी की तरह इंद्रधनुष जैसा इफेक्ट भी, यह ग्रह हमारे सौर मंडल से 637 प्रकाश वर्ष दूर

WASP-76b ग्रह पर होती है लोहे की बारिश:  पृथ्वी की तरह इंद्रधनुष जैसा इफेक्ट भी, यह ग्रह हमारे सौर मंडल से 637 प्रकाश वर्ष दूर


वॉशिंगटन7 घंटे पहले

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WASP-76बी का इलस्ट्रेशन और इसके वातावरण में इंद्रधनुष जैसा ग्लोरी इफेक्ट।

हमारे सौर मंडल के बाहर एक ग्रह है WASP-76b। सौर मंडल से बाहर के ग्रहों को एक्सोप्लैनेट कहते हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि WASP-76b पर लोहे की बारिश के साथ इंद्रधनुष बनने जैसी घटना भी होती है। इसे ग्लोरी कहा जाता है।

इस तरह की घटना अभी तक सौर मंडल से बाहर पहले कभी डिटेक्ट नहीं की गई थी। WASP-76b की घटना पृथ्वी पर इंद्रधनुष बनने के समान है, जिससे सुझाव मिलता है कि WASP-76b पर गोलाकार और समान कणों से बने बादलों की उपस्थिति है।

WASP-76b गैस का गोला है और हमारी पृथ्वी से 637 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। इसे 2013 में खोजा गया था। यह अपने पेरेंट यलो स्टार से सिर्फ 4.8 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर है। इस स्टार का द्रव्यमान सूर्य से लगभग 1.5 गुना और चौड़ाई 1.75 गुना है।

होस्ट स्टार से निकटता के कारण होती है लोहे की बारिश
लोहे की बारिश का कारण उसकी अपने होस्ट स्टार से निकटता है। निकटता की वजह से ग्रह को एक तरफ लगातार दिन के उजाले का सामना करना पड़ता है। तापमान 2,400 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बढ़ जाता है, जो धातुओं को वाष्पित करने के लिए पर्याप्त है।

WASP-76b पर इतने तापमान में लोहा भाप में बदल जाता है और तेज हवाएं इस लौह वाष्प को ग्रह के दूसरे तरफ ले जाती है जहां हमेशा ठंडी रात रहती है। इससे आयरन क्लाउड बनते हैं और लोहे की बारिश होती है।

यह इलस्ट्रेशन एक्सोप्लैनेट WASP-76b का नाइट साइड व्यू दिखाता है। (इमेज क्रेडिट: ईएसओ/एम. कोर्नमेसर)

3 साल में दो दर्जन बार WASP-76b को ऑब्जर्व किया
अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी के चेओप्स मिशन में ये जानकारियां सामने आई हैं। इसे दिसंबर 2019 में लॉन्च किया गया था। CHEOPS ने तीन साल के दौरान लगभग दो दर्जन बार WASP-76b का ऑब्जर्वेशन किया।

वैज्ञानिकों ने ग्रह के ईस्टर्न टर्मिनेटर में एक अजीब प्रकाश-असमानता को समझने का प्रयास किया। ईस्टर्न टर्मिनेटर डे और नाइट के बीच की बाउंड्री को कहा जाता है। यहां वैज्ञानिकों को ग्रह के ईस्टर्न टर्मिनेटर से लाइट में बढ़ोतरी का पता चला था।

वैज्ञानिकों का कहना है कि ईस्टर्न टर्मिनेटर में लाइट की यह अप्रत्याशित बढ़ोतरी ग्लोरी इफेक्ट का संकेत देती है। यह एक ऐसी घटना है जिसके घटित होने के लिए बहुत विशिष्ट परिस्थितियों की आवश्यकता होती है।

खोज से एक्सोप्लैनेट के अध्ययन के लिए नए रास्ते खुलेंगे
पुर्तगाल के एक इंस्टीट्यूट में एस्ट्रोनॉमर और स्टडी के लीड ऑथर ओलिवियर डेमांजोन इस खोज के महत्व को बताते हैं। वह कहते हैं, हमारे सौर मंडल के बाहर पहले कोई ग्लोरी नहीं देखी गई है, क्योंकि इसके लिए बहुत ही अजीब परिस्थितियों की आवश्यकता होती है।

WASP-76b पर इस प्रभाव की पुष्टि से न केवल ग्रह की वायुमंडलीय संरचना की गहरी समझ मिलेगी बल्कि अन्य एक्सोप्लैनेट के अध्ययन के लिए नए रास्ते भी खुलेंगे।

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